बाल्यकाल में एक बार जब हनुमान जी सूर्यदेव को फल समझकर खाने के लिए दौड़े तो घबराकर देवराज इंद्र ने हनुमानजी पर अपने सबसे ताकतवर अस्त्र वज्र से वार कर दिया। वज्र के प्रहार से हनुमान जी मुर्छित हो गए। यह देखकर पवन देव बहुत क्रोधित हो गये और उन्होंने समस्त संसार में से वायु का प्रवाह को रोक दिया। समस्त संसार में हाहाकार मच गया। मनुष्य, पशु, पक्षी, जीव-जन्तु सभी के प्राण संकट में आ गये। तब परमपिता ब्रह्मा ने हनुमान को पुन : जीवन दान देकर जीवित कर दिया। उस समय सभी देवताओं ने हनुमानजी को वरदान दिए।
हनुमान जी को बहुत से देवी-देवताओं के द्वारा विभिन्न प्रकार के वरदान, शक्तियाँ और अस्त्र-शस्त्र प्राप्त हुए। इन वरदानों और शस्त्रों के कारण हनुमान जी सभी लोको में विचरण करते रहते थे और कभी-कभी वे ऋषियों और मुनियों को भी तंग कर देते थे। उनके इस सवभाव के कारण उनको एक बार अंगिरा और भृगुवंश के मुनियों ने कृपित होकर श्राप दिया कि वे अपनी सभी शक्तियों को भूल जाएं और उनको उनकी शक्तियों का आभास तब ही हो जब उनके हर्दय में बसने वाले देवता उन्हें याद दिलाएंगे।
सूर्य देव के द्वारा दिया वरदान :
भगवान सूर्यदेव ने हनुमानजी को 9 तरह की विद्याओं के ज्ञान के साथ साथ अपने तेज का सौवां भाग देते हुए भगवान हनुमान जी को शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति दी, इस शक्ति के माध्यम से हनुमान जी एक अच्छे वक्ता बने और शास्त्रज्ञान में इसकी समानता करने वाला कोई नहीं हुआ।
धर्मराज यम का वरदान :
धर्मराज यम ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह मेरे दण्ड से अवध्य और निरोग होगा। यमराज ने यह भी कहा कि हनुमानजी कभी भी यम के प्रकोप के शिकार नहीं होंगे।
कुबेर देव का वरदान :
कुबेर देव ने भगवान हनुमान जी को वरदान दिया कि हनुमान जी को कभी भी किसी भी युद्ध में हार का सामना नहीं करना पड़ेगा और अपनी गदा शस्त्र रूप में हनुमान जी को दिया। कुबेर ने अपने अस्त्र-शस्त्र से हनुमान जी को निर्भय कर दिया।
भगवान शंकर का वरदान :
भगवान शंकर ने यह वरदान दिया कि यह मेरे और मेरे शस्त्रों द्वारा भी अवध्य रहेगा। अर्थात किसी भी अस्त्र से न मरने का वरदान दिया।
विश्वकर्मा का वरदान :
देवशिल्पी विश्वकर्मा ने वरदान दिया कि मेरे बनाए हुए जितने भी शस्त्र हैं, उनसे यह अवध्य रहेगा और चिंरजीवी होगा।
देवराज इंद्र का वरदान :
देवराज इंद्र ने हनुमान जी को वरदान दिया की आज के बाद उनके वज्र का प्रहार भी अवध्य रहेगा। मेरे द्वारा इसकी हनु खंडित होने के कारण इसका नाम हनुमान होगा।
वरुण देव का वरदान :
वरुण देव ने यह वरदान दिया कि दस लाख वर्ष की आयु हो जाने पर भी मेरे पाश और जल से इस बालक की मृत्यु नहीं होगी। अर्थात वरुणदेव ने हनुमान जी को दस लाख वर्षो तक जीवित रहने का वरदान दिया।
ब्रह्मा देव का वरदान युद्ध में नहीं हरा पाएगा कोई भी हनुमान को
परमपिता ब्रह्मा ने हनुमानजी को वरदान दिया कि यह बालक दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्मदण्डों से अवध्य होगा। युद्ध में कोई भी इनको हरा नही पाएगा। हनुमान जी कभी भी कोई भी रूप धारण कर सकेंगे और जहां चाहे वह जा सकेंगे। इसकी गति इसकी इच्छा के अनुसार तीव्र या मंद हो जाएगी। हनुमान जी से जुडी बहुत सी कथाए हिन्दू ग्रन्थ रामायण में मिलती है। एक बार जब हनुमानजी लंका में माता सीता की खोज करते-करते रावण के महल में गए, तो वहां रावण की पत्नी मंदोदरी को देखकर उन्हें माता सीता समझ बैठे और बहुत प्रसन्न हुए, लेकिन बहुत सोच-विचार करने के बाद हनुमानजी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि रावण के महल में इस प्रकार आभूषणों से सुसज्जित यह स्त्री माता सीता नहीं हो सकती। लंका में बहुत ढूढ़ेने के बाद भी जब माता सीता का पता नहीं चला तो हनुमानजी उन्हें मृत समझ बैठे, लेकिन फिर उन्हें भगवान श्रीराम का स्मरण हुआ और उन्होंने पुन : पूरी शक्ति से सीताजी की खोज प्रारंभ की और अशोक वाटिका में सीताजी को खोज निकाला। सीताजी ने भी हनुमानजी को वरदान दिया था। हनुमान जी को माता सीता ने अमरता का वरदान दिया है अत: वे हर युग में भगवान श्रीराम के भक्तों की रक्षा करते हैं। कलयुग में हनुमान जी की आराधना तुरंत ही शुभ फल देने वाली है। हनुमान चालीसा की एक चौपाई में भी लिखा हुआ है- 'अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता। अस बर दीन्ह जानकी माता'।।
इसका अर्थ है- 'आपको माता श्री जानकी से ऐसा वरदान मिला हुआ है जिससे आप किसी को भी आठों सिद्धियां और 9 निधियां दे सकते हैं।
श्रीराम को जब हनुमानजी ने सीताजी का हाल सुनाया तो उन्होंने भावविभोर हो कर उन्हें गले लगा लिया और वरदान मांगने को कहा तब श्री हनुमान के सदा उनके पास रहने का वरदान मांगा था। इसलिए जहां भी रामायण का पाठ होता है वहां हनुमान अदृश्य रूप से जरूर उपस्थित होते हैं। लंका विजय पश्चात हनुमान जी ने प्रभु श्री राम से सदा निश्छल भक्ति की याचना की थी। प्रभु श्री राम ने उन्हें अपने हृदय से लगा कर कहा था, 'हे कपि श्रेष्ठ ऐसा ही होगा, संसार में मेरी कथा जब तक प्रचलित रहेगी, तब तक आपके शरीर में भी प्राण रहेंगे तथा आपकी कीर्ति भी अमिट रहेगी। आपने मुझ पर जो उपकार किया है, उसे मैं चुकता नहीं कर सकता। श्रीराम भक्त हनुमान जी का जन्म दीन-दुखियों के कष्ट हरने के लिए हुआ है और हनुमान जी कलयुग के अजर-अमर चिरंजीवियों में से एक है। भगवान हनुमान जी भगवान शिव के ही अवतार है। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने के लिए भगवान शिव ने ही हनुमान के रूप में अवतार लिया था। हनुमानजी भगवान शिव के सबसे श्रेष्ठ अवतार माने जाते हैं।
भगवान विष्णु को पसंद है बृहस्पति गुरु का पीला रंग