<no title>काल का मतलब होता हे समय और भैरव शिव के रुप का नाम है

कालाष्टमी पर पापियों को दंड देते हैं भैरव देव



कालाष्टमी काल भैरव


कालाष्टमी के दिन भैरव देव का जन्म हुआ था, इसलिए इसे भैरव जयंती अथवा काल भैरव अष्टमी भी कहा जाता हैं। भैरव देव भगवान शिव का रूप माना जाता हैं। यह उनका एक प्रचंड रूप है। यह भैरव अष्टमी, भैरव जयंती, काला- भैरव अष्टमी, महाकाल भैरव अष्टमी और काल भैरव जयंती के नाम से जाना जाता है। यह भैरव के भगवान के जन्मदिन - के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। भैरव रूप भगवान शिव का एक कालाष्टमा/ डरावना और प्रकोप व्यक्त करने वाला रूप हैं। काल का मतलब होता कालभरखा है समय एवं भैरव शिव का रूप का नाम है। हर माह की कृष्ण पक्ष आज की सभी अष्टमी को काल भैरव को समर्पित कर कालाष्टमी कहा जाता है। यह दिन पापियों को दंड देने वाला दिन माना जाता है, इसलिए भैरव को दंडपानी भी कहा जाता हैं। मान्यतानुसार काले कुत्ते को भैरव बाबा का प्रतीक समझा जाता है, क्यूकि कुत्ता भैरव देव की सवारी है, इसलिए इनमे स्वस्वा भी कहा जाता है। यह रूप देवताओं और इंसानों में जो भी पापी रहता है. उसे दंड देता है। उनके हाथों में जो डंडा होता है, उससे वो दण्डित करते है।


कथा का महत्व


एक बार त्रिदेव, बहा विष्णु एवम महेश तीनो में कौन श्रेष्ठ इस बात पर लढाई चल रही थी। इस बात पर बहस बढ़ती टी चली गई, जिसके बाद सभी देवी देवताओं को बुलाकर एक बैठक की गई। यहां सबसे राठी पुन गया कि कौन ज्यादा श्रेष्ठ है। सभी ने विचार विमर्श कर इस बात का उत्तर खोजा, जिस सात का समर्थन शिव एवं विष्ण नेतो किया लेकिन तबहीबह्माजी ने भगवान शिव को अपशब्द कह दिये जिसके कारण भगवान शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने इसे अपना अपमान समझा। शिव जी ने उस कोष से अपने रूप मैरवका जन्म किया। इस मैवका अनार का वाहन काला कृता था, जिसके एक हाथ में छड़ी थी। इस अवतार को महाकालेश्वर के नाम से भी मुलाया जाता है। इसलिए इनको 'इंअधिपति कता गया। शिव जी के इसपको देख सभी देवी देवता घबरा गए। मैरव ने कोच में बाजी के पांच मुखों में से एक मुखको कार दिया तब टी से ब्रह्मा के पास चार मुख हैं। इस प्रकार बाजी केस को काटने के कारण भैरव जी पर बमलत्या का पाप आ गया। बहन जी ने मैरव सासा से माफी मांगी, तब शिव जी अपने असली रूप में आ जाते है।