गांधारी के एक शाप से समुद्र में डूब गई द्वारका नगरी

कुछ साल पहले समुद्र में डूब चुकी द्वारका नगरी का कुछ हिस्सा और अवशेष मिले थे। जिसके बाद द्वारका के वैभव और समृद्धि को लेकर चर्चाएं शुरू हो गईं थी। हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार, द्वारका भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण के द्वारा बसाई गई नगरी है। ऐसे में मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि वह नगरी समुद्र में डूब ही कैसे सकती है, जिसे खुद भगवान ने बसाया हो?



गांधारी का शाप
प्राप्त तथ्यों और जानकारी के आधार पर महाभारत युद्ध के 50 साल भी पूरे नहीं होते और श्रीकृष्ण की नगरी समुद्र में डूब जाती है। साथ ही द्वारका के डूबने से पहले श्रीकृष्ण और बलराम भी पृथ्वीलोक को छोडक़र चले जाते हैं और पूरा यदुवंश ही खत्म हो जाता है। आखिर भगवान का वंश क्यों खत्म हो गया? दरअसल, महाभारत में गांधारी और धृतराष्ट्र के सभी 100 पुत्र मारे गए थे। युद्ध समाप्ति के बाद श्रीकृष्ण गांधारी से मिलने जाते हैं। उधर, अपने जीवित रहते हुए सभी पुत्रों के मर जाने पर गांधारी बहुत व्यधित थीं। एक मां के दर्द आंसुओं से गांधारी ने श्रीकृष्ण भगवान को शाप दिया कि जिस तरह मेरे वंश में नाम लेने वाला कोई नहीं बचा, ठीक वैसे ही तुम्हारा वंश भी नहीं चल पाएगा। मैं शाप देती हूं कि पूरा यदुवंश खत्म हो जाएगा, कृष्ण तुम्हारा वंश भी मेरे वंश की तरह खत्म हो जाएगाज् गांधारी के क्रोध और दर्द की चित्कार से पूरा महल गूंज रहा था और कृष्ण शांत भाव से गांधारी के समीप खड़े हुए थे।
ऋषियों ने दिया था शाप
गांधारी द्वारा श्रीकृष्ण को शाप दिए जाने के चौथे दशक में द्वारका में लगातार अपशकुन होने लगे। तेज आंधियां, प्राकृतिक आपदाएं रोजमर्रा की बातें बन गईं। इसी बीच एक दिन देव ऋषि नारद, महर्षि विश्वामित्र अन्य कई महर्षियों के साथ द्वारका आए। इन सिद्ध मुनियों को एकसाथ देखकर द्वारका के कुछ युवकों ने इनसे मजाक करने का विचार आया। इस पर उन्होंने श्रीकृष्ण के बेटे सांब को गर्भवति स्त्री के वेश में तैयारकर मुनियों से पूछा कि यह स्त्री गर्भवती है, देखकर बताइए कि इसके गर्भ से क्या उत्पन्न होगा? ऐसा उपहास देखकर मुनि क्रोधित हो गए, उन्होंने कहा, इस स्त्री बने श्रीकृष्ण के पुत्र सांब के गर्भ से एक ऐसा मूसल उत्पन्न होगा, जो संपूर्ण यदुवंश के काल का कारण बनेगा। जब श्रीकृष्ण को यह बात पता चली तो उन्होंने कहा कि मुनी की वाणी कभी झुठलाई नहीं जा सकती, ऐसा होगा। फिर ऐसा हुआ भी। जब मूसल के बारे में राजा उग्रसेन को पता चला तो उन्होंने इस मूसल को समुद्र में फिंकवा दिया।
तीर्थ पर लड़ मरे सभी यदुवंशी
श्रीकृष्ण ने यदुवंशियों को तीर्थ पर भेजा और वहां वे आपस में लडऩे लगे। एक-दूसरे पर वार करने के लिए वह जो भी पेड़ पोधा या घास उखाड़ते ऋशि शाप से वह मूसल में बदल जाती। ऐसा मूसल जिसके एक वार से प्राण निकल जाएं। जब श्रीकृष्ण को यह बात पचा लती है तो वह वहां पहुंचे। संहार का दृश्य देखकर श्रीकृष्ण अपने सारथी दारुक कहते कि आप हस्तिनापुर जाकर अर्जुन को इस घटना की जानकरी दे दो और द्वारका ले आओ। दारुक ने ऐसा ही किया। उधर बलरामजी घटना स्थल पर पहुंच जाते हैं। श्रीकृष्ण उन्हें वहीं रुकने के लिए कहकर द्वारका चले आते हैं और अपने पिता वासुदेवजी को यदुवंशियों के सर्वनाश की घटना सुनाते हैं। इस पर वासुदेव बहुत दुखी होते है और कृष्ण वापस घटनास्थल पर आते हैं।
बैकुंठ धाम लौट गए श्रीकृष्ण
वह देखते हैं कि बलराम समाधि में लीन हैं, तभी सहस्र मुखों वाला एक सांप बनकर बलरामजी समुद्र में प्रस्थान कर जाते हैं, समुद्रदेव स्वयं प्रकट होकर उनका स्वागत करते हैं। यह दृश्य देखकर श्रीकृष्ण आसमान को निहारते हैं और विचार करते हैं कि वैसा ही समय बना है जैसा महाभारत के युद्ध के समय बना था। यह विचार करते हुए वह एक पेड़ के नीचे बैठ जाते हैं, जहां एक शिकार दूर से उनके पैर को देखकर हिरण का मुख समझता है और तीर मार देता है। इस तीर से श्रीकृष्ण बैकुंठलोक को प्रस्थान कर जाते हैं। अर्जुन द्वारका पहुंचते हैं। अर्जुन के आने के कुछ समय बाद वासुदेवजी प्राण त्याग देते हैं। उन सभी अंतिम संस्कार कर बाकी बची स्त्रियों और बच्चों को अर्जुन अपने साथ द्वारका ले जाते हैं। उनके जाते ही द्वारका नगरी समुद्र में समा जाती है।