बाएं चलने की सीख देते हैं बौद्ध छोरतन

शीत मरूस्थल लाहौल-स्पीति में प्रकृति की रचनाएं जितनी रहस्यपूर्ण हैं उतनी ही अद्भुत बौद्ध धर्म संस्कृति भी है। जनजातीय जिला के प्रत्येक गांवों में बौद्ध मठ मिले न मिलें, छोरतन हर गांव में अवश्य मिलेंगे। छोरतन कालांतर से ही बौद्ध समुदाय को न केवल धार्मिक नियमों का पालन करते रहने की सीख दे रहे हैं बल्कि नियमों का अक्षरश: पालन करने वाले बौद्ध अनुयायियों की आस्था के मंदिर भी हैं।




आठ बौद्ध तीर्थ स्थलों के प्रतीक हैं काजा के बौद्ध स्तूप
स्पीति मुख्यालय काजा में तंज्ञुद बौद्ध मठ के समीप विशिष्ट कलाकृतियों से परिपूर्ण बौद्ध स्तूप देश-विदेश के 8 बौद्ध तीर्थ स्थानों के प्रतीक बताए गए हैं। इनके पास ही प्राचीन शिलालेखों के भंडार सृजित किए गए हैं। महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं को प्रतिबिंबित करने वाले बौद्ध स्तूप हर आने-जाने वाले को हमेशा बाएं चलने की प्रेरणा भी दे रहे हैं। विपरीत दिशा में चलना यहां पूरी तरह निषेध है। तंज्ञुद बौद्ध मठ के लामा शेरप जांगपो ने बताया कि इन बौद्ध स्तूपों की परिक्रमा मात्र से ही देश-विदेश के 8 बौद्ध धार्मिक तीर्थ स्थलों की परिक्रमा का पुण्य मिलता है।
छोरतन यानि कि बौद्ध स्तूप
मान्यता है कि बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में बौद्ध स्तूपों व शिलालेखों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आस्था के अनुरूप बौद्ध स्तूपों की परिक्रमा यहां सभी धर्मों को मानने वाले लोग कर सकते हैं। छोरतन के अंदर देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, बौद्ध ग्रंथ, सोना, चांदी अनेक कीमती धातुओं के पात्र, हथियार, औजार और कई बेशकीमती मणि माणिक्यों सहित सभी प्रकार के अनाज रखे गए हैं, इनके अंदर जाने का कोई रास्ता नहीं है। मंदिर की भांति शिखर शैली में बनाए गए स्तूपों में न दरवाजे हैं और न ही खिड़कियां हैं। काले रंग की धातुएं और काले अनाज इनमें रखना पूरी तरह से वर्जित है। बौद्ध बाहुल्य क्षेत्र स्पीति घाटी में 5 बड़े बौद्ध गोंपा हैं। इनमें कीह, तंज्ञुद, कुंगरी, ताबो व ढंखर गोंपा प्रमुख हैं। ग्रामीण बौद्ध अनुयायी गोंपाओं में भले ही प्रतिदिन न जा सकें, लेकिन अपने गांव के छोरतन में परिक्रमा का पुण्य प्राप्त करना उनका नित्य-नियम है।