श्रीकृष्ण ने भी चुकाया था एक-एक धागे का कर्ज

बहन और भाई के स्नेह से जुड़े इस त्योहार की शुरुआत करीब छह हजार साल पहले हुई थी। माना जाता है कि बहन रूपी महिलाओं की रक्षा के लिए राखी की परंपरा शुरु हुई, जिसके बाद हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा पर इस त्योहार को मनाया जाना शुरू कर दिया गया। रक्षाबंधन का जिक्र महाभारत में भी मिलता है।



 


बहन और भाई के स्नेह से जुड़े इस त्योहार की शुरुआत करीब छह हजार साल पहले हुई थी। माना जाता है कि बहन रूपी महिलाओं की रक्षा के लिए राखी की परंपरा शुरु हुई, जिसके बाद हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा पर इस त्योहार को मनाया जाना शुरू कर दिया गया। रक्षाबंधन का जिक्र महाभारत में भी मिलता है।
जब सुदर्शन चक्र से उंगली कट जाने पर भगवान श्रीकृष्ण का रक्त बहनें लगा था। यह देख द्रोपदी ने अपनी साड़ी का पल्ला फाड़ा और उसे उनकी उंगली पर बांध दिया, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने वचन दिया कि वह एक-एक धागे का ऋण चुकाएंगे। माना जाता है कि इस दिन भी श्रावण मास की पूर्णिमा ही थी। ऐसे में इस दिन का महत्ता और बढ़ गई। फिर जब महाभारत के युद्ध से पहले पांडव द्रोपदी को युद्ध में हार गए थे और कौरवों ने भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण करना चाहा, तब श्रीकृष्ण ने अपनी लीला से द्रोपदी की साड़ी को इतना लंबा कर दिया कि कौरवों हार माननी पड़ी। वैसे महाभारत में ही रक्षाबंधन से जुड़ा एक और उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि महाभारत का युद्ध जीतने में राखी का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं कैसे सभी संकटों से पार पा सकता हूं। कृष्ण ने उन्हें तथा उनकी सेना को रक्षा धागा बंधने को कहा। तब से इस दिन पवित्र रक्षासूत्र बांधा जाता है। यह घटना भी सावन महीने की पूर्णिमा तिथि पर ही घटित हुई मानी जाती है।